ओडिशा की पहचान और भारत एवं पूरे विश्व में प्रसिद्ध रथ यात्रा जो कि मुख्यतः पूरी में आयोजित होती है लेकिन इसकी तर्ज पर रथ निकलने के परंपरा पूरे विश्व में है इसका आयोजन प्रत्येक वर्ष आषाढ़ माष शुक्ल पक्ष द्वितीय तिथि को होता या अर्थात इस वर्ष यह आयोजन 20 जून को है इसकी शुरुआत 20 जून मंगलवार को रात्रि 10:04 से लेकर 21 जून संध्या 7:09 तक होगा।
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ओडिशा में जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व
जगन्नाथ रथ यात्रा ओडिशा के साथ साथ पूरे देश में बड़े ही श्रद्धा का पर्व है और इसे पूरे देश में बड़े विधि विधान के साथ मनाया जाता है खासकर इस दिन ओडिशा के पूरी शहर में भगवान जगन्नाथ उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा हेतु 3 लकड़ियों के विशाल रथों का निर्माण किया जाता है
तीनो रथों में भगवान जगन्नाथ के रथ का आकार सबसे बड़ा होता है जिनके रथ में 16 पहिए लगे होते है और इसकी ऊंचाई 44.2 फिट होती है इनके रथ का निर्माण 832 लकड़ी के टुकड़ों के साथ किया जाता है इसके बाद बड़े भाई बलभद्र के रथ की बारी आती है जिनके रथ में 14 पहिए लगे होते है
इसकी ऊंचाई 43 फिट होती है फिर बहन सुभद्रा के रथ की बारी आती है इनके रथ के 12 पहिए और ऊंचाई 42 फिट होती है इन तीनो रथों पर सवार होकर तीनो भाई बहन नगर की यात्रा पर निकलते है
रथों के क्रम में बहन सुभद्रा का रथ बीच में और दोनो भाइयों के रथ अगल बगल में होता है ऐसी मान्यता है की रथ यात्रा के दर्शन मात्र से और इस रथ यात्रा का हिस्सा होने से लोगो की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और लोगो के सभी कष्टों को भगवान जगन्नाथ दूर करते है यह रथ यात्रा पूरे ओडिशा के साथ साथ पूरे देश में लोगो में आपसी सद्भाव का संचार करता है
प्रभावशाली रथ और पवित्र परिवहन
इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ और उनके बड़े भाई और बहन जिन रथों पर सवार होते हैं उनका निर्माण कार्य अक्षय तृतीया अर्थात मई माह में ही प्रारंभ हो जाता है जो लगभग 1 से 2 माह के समय के पश्चात पूर्ण होता है इसे बड़ी बारीकी के साथ एक एक विशेषता का ध्यान रखते हुए निर्मित किया जाता है
इसकी एक सबसे बड़ी खासियत यह है की इसका आकार और इसकी ऊंचाई वर्षो से निश्चित है और प्रत्येक वर्ष इसी आकार का इसे निर्मित किया जाता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा पीछे की कहानी
वैसे तो ये प्रत्येक वर्ष नए फसलों के रोपण प्रक्रिया के प्रारंभ होने का प्रतीक माना जाता है लेकिन इसके साथ साथ ही इसके पीछे की कहानियां भी बड़ी प्रसिद्ध है
उनमें एक सबसे प्रसिद्ध कहानी है की एक दिन बहन सुभद्रा ने अपने भाई श्री जगन्नाथ से अपने नगर अर्थात पूरी को घूमने की इच्छा जाहिर की जिसमे पहले तो भगवान ने उन्हे थोड़ा टालने की कोशिश की लेकिन उसके पश्चात बहन सुभद्रा के जिद करने पर दोनो भाई उन्हे नगर भ्रमण करवाने के लिए तैयार हो गए,
इसके पश्चात तीनो एक दिन अपने अपने रथों पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकले और इसी क्रम में वो अपनी मौसी के यहां गोंचियां माता के यह गए वहा वे 9 दिन तक रुके फिर वहा से 10 वे दिन वापस आ गए
तब से लेकर आज तक प्रत्येक वर्ष भगवान जगन्नाथ प्रत्येक वर्ष अपने बड़े भाई और बहन के साथ नगर भ्रमण पर निकलते है और अपनी जनता को दर्शन देते हैं।
रोचत किससे जगन्नाथ रथ यात्रा के
इस त्योहार के बारे में गजपति महाराज देव कहते हैं कि “भारत का सबसे बड़ा त्योहार है जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा” और उनके इस कथन पर किसी को जरा भी सक नही होना चाहिए क्युकी इसमें कुछ ऐसी परम्परों का पालन किया जाता है को देश के किसी अन्य त्यौहार में देखने को नही मिलता है जैसे कि रथ यात्रा के प्रारंभ होते ही पूरी के राजा भगवान की रथ के मार्ग में स्वयं झाड़ू लगाते है जो सामाजिक समरसता और समानता का प्रतीक प्रदर्शित करता है
साथ ही साथ यह राजा और फकीर की बराबरी को भी प्रदर्शित करता है इस रथ को खींचने वालों में किसी प्रकार के भेद भाव और ऊंच नीच का भेद भूलकर सब एक साथ इस रथ को खींचते है जो जनता के आपसी एकत्व का प्रसार करता है,
सद्भाव और उत्साह का प्रचार: भारतवर्ष में जगन्नाथ रथ यात्रा
इस त्योहार के रोचक किस्से में एक किस्सा और बड़ा प्यारा दिखाई पड़ता है कि जब इस त्यौहार का प्रारंभ स्नान यात्रा से किया जाता है तब भगवान जगन्नाथ को और इनके भाई बहन को 108 घड़ों के पवित्र जल से स्नान करवाया जाता है
तब इस स्नान के कारण ऐसी मान्यता है की उन्हे बुखार हो जाता है जिसके पश्चात तीनो को 2 हफ्तों के लिए मंदिर के अंदर एकांत वाश में रखा जाता हैं और तब केवल मंदिर के मुख्य पुजारी और वैद्य को ही उन्हे देखने की अनुमति होती है
ये परंपरा यह प्रदर्शित करती है की लोगो के मन में भगवान के प्रति कितना अधिक प्रेम और स्नेह है और वो किस निश्चल भाव से अपने आराध्य की सेवा करते है 15 दिन के बाद भगवान बाहर जनता के बीच जाते है यह त्योहार कुल 3 हफ्तों तक चलता है।
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